हर तरफ है उदासियों का दृश्यांतर,
आख़री सांसों में तैरते हैं कहीं
कुछ दिन और जीने की
एक अदम्य उत्कंठा,
प्रकृति अपना
महसूल
हर
हाल में करती है वसूल, पड़े रहते
हैं भस्म में लिपटे हुए सभी
अधजले उम्मीद, कुछ
बांझ महत्वाकांक्षा,
चिंगारियों में
उड़ जाते
हैं न
जाने कहाँ सभी जन्म जन्मांतर
साथ रहने की अंतहीन मंशा,
आख़री सांसों में तैरते
हैं, कहीं कुछ दिन
और जीने की
एक अदम्य
उत्कंठा।
सभी
पर्वतारोही नहीं पहुँच पाते हैं उस
अलौकिक बिंदु पर, फिर भी
जीवन यात्रा नहीं रूकती,
नदी, अरण्य, प्रस्तर -
खंड, झूलते हुए
सेतु बंध,
सभी
अपनी जगह हैं यथावत मौजूद, -
विलीन पदचिन्हों पर फिर
चलते जाएंगे अनाहूत
निर्भीक आरोही,
फिर उभरेंगे
सभी
डूबे हुए चेहरे, पुनः पृथ्वी में गूंजेगा
एक दिन हर्षोल्लास का अंतहीन
डंका - -
* *
- - शांतनु सान्याल
11 अप्रैल, 2021
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शाश्वत सत्य कहती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 11 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसोचने को व्वश करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअद्भुत भावों को उकेरा है आपने ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंएक धनात्मक शुरुआत की कल्पना कराती सुंदर रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी ।।।।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 12-04 -2021 ) को 'भरी महफ़िलों में भी तन्हाइयों का है साया' (चर्चा अंक 4034) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंशाश्वत सत्य को कहती सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंएवमस्तु. ऐसा ही हो. हर्षोल्लास का अंतहीन नाद सुनने की आस से ही जीवन सरस है.
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन.
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर व दार्शनिकता से परिपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंफिर उभरेंगे
जवाब देंहटाएंसभी
डूबे हुए चेहरे, पुनः पृथ्वी में गूंजेगा
एक दिन हर्षोल्लास का अंतहीन
डंका - - ऐसा ही हो.. अद्भुत सृजन,
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअद्भुत भाव , शाश्वत सत्य को दर्शाती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअति सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंविलीन पदचिन्हों पर फिर
जवाब देंहटाएंचलते जाएंगे अनाहूत
निर्भीक आरोही...सुंदर अभिव्यक्ति
निरंतर चलते रहना ही है ज़िन्दगी...
चलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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