14 अप्रैल, 2021

अनुच्चारित शिलालिपि - -

इस गहन नील अंधकार के बाद भी,
बहुत कुछ है निःशेष, कुछ बातें
हैं मौन, पत्थरों के सीने पर
लिपिबद्ध, उन अदृष्ट
शब्दों में हैं छुपे
हुए आगामी
कल के
कुछ
अवशेष, इस गहन नील अंधकार के
बाद भी, बहुत कुछ है निःशेष।
अनगिनत प्रकाश वर्षों से
जो बह रहा है हमारे
दरमियां उस
अगोचर
स्रोत
में कहीं गूंजती है भविष्य की ध्वनि,
उन अश्रुत, अनुच्चारित शब्दों से
ही उभरती है नई ज़िन्दगी,
क्रंदनमय इस महा -
निशा के शेष
प्रहर में हैं
खड़े
कुछ उजानमुखी नाव, सुदूर कहीं
तैरते दिखाई पड़ते हैं, कतिपय
टिमटिमाते हुए बंदरगाह,
कुछ नींद से जागे हुए
हरित प्रदेश,
इस गहन
नील
अंधकार के बाद भी, बहुत कुछ है
निःशेष - -

* *
- - शांतनु सान्याल 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2099...कभी पछुआ बहे तो कभी पुरवाई है... ) पर गुरुवार 15अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अन्धकार के बाद भी बहुत कुछ है ...एक आशा ... जो जीवन में बहुत ज़रूरी है ...

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  3. इस गहन
    नील
    अंधकार के बाद भी, बहुत कुछ है
    निःशेष - -
    आशावादी कविता!

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  4. इस गहन
    नील
    अंधकार के बाद भी, बहुत कुछ है
    निःशेष - - वाह ।

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