08 अप्रैल, 2021

अदल-बदल का खेल - -

कैसे छोड़ दूँ सपनों के पीछे दौड़ना, अंदर
का रिले रेस, हर हाल में चाहता है,
तुम तक पहुंचना, मैंने बांध
ली है, ज़ख्मों के ऊपर
स्मृति रुमाल,
हाथों में हैं
कुछ
रंगीन पताका, हर एक जनम में लेकिन
तुम उसी दिगंत बिंदु पर रुकना,
अंदर का रिले रेस, हर हाल
में चाहता है, तुम तक
पहुंचना। कुछ
तितलियों
के मृदु
स्पर्श, कुछ सुबह की कच्ची धूप, कुछ
रंगीन पेंसिलों के उपहार, कहानियों
की किताब, कुछ मुस्कान भरे
उम्मीदों का हाथ बदल,
तुम उड़ान पल के
नीचे किसी
मासूम
शिशु
के आसपास कहीं ठहरना, अंदर का रिले
रेस, हर हाल में चाहता है, तुम तक
पहुंचना। उस कांच की दीवार
के उस पार, बसते हैं कुछ
रेशमी लिबास वाले,
काश, वो भी
जान पाते
ये ख़ुशियों का खेल, भावनाओं का अदल -
बदल, जो बंद है उनकी सोच में कहीं,
वो अक्सर चाहते हैं अन्तःस्थल
से बाहर छलकना, अंदर का
रिले रेस, हर हाल में
चाहता है, तुम
तक
पहुंचना।
 
* *
- - शांतनु सान्याल   
 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी, बहुत सुंदर, मर्मस्पशी काव्य-रचना। अभिनंदन शांतनु जी।

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  2. शीशे की दीवारों में कैद लोगों को खुशियों के महत्व का क्या पता !

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  3. वाह! संवेदनाओं को जगाती सार्थक रचना।

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  4. बहुत सुंदर दिल को छूने वाली पंक्तियाँ

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  5. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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