शून्य दृष्टि, निर्मम नियति के
आगे सभी हैं आज बहुत
ही लाचार, चारों
तरफ टूटते
सांसों
के मध्य मानवता करती है हाहाकार,
कोई मिटाए चला हो जैसे अपने
ही हाथों, अपनी बनाई हुई
ख़ूबसूरत सृष्टि,
अंतरतम
को
बेध जाती है जीवन की शून्य दृष्टि।
आज मुस्कराहट में भी, दर्द का
है एक अदृश्य समावेश,
आज हैं हम आमने
सामने, चाहते
हैं कुछ
पल
का कथोपकथन, कल नीरवता के
सिवाय कुछ भी न रहे हमारे
मध्य अवशेष, फिर भी
सब कुछ ख़त्म
नहीं होगा,
मरू -
धरा अपनी जगह है अडिग, इस
जीवन की प्यास है अंतहीन,
कहीं न कहीं से खोज ही
लाएगा वो एक दिन,
अविरत धाराओं
में टूट कर
बरसती
हुई
महा वृष्टि, अंतरतम को बेध
जाती है जीवन की
शून्य दृष्टि।
* *
- - शांतनु सान्याल
जाती है जीवन की
शून्य दृष्टि।
* *
- - शांतनु सान्याल
अंतरतम को बेध जाती है जीवन की
जवाब देंहटाएंशून्य दृष्टि
...बेहतरीन रचना।।।।।
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंखूबसूरत भावपूर्ण पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 26-04 -2021 ) को 'यकीनन तड़प उठते हैं हम '(चर्चा अंक-4048) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंbhavnatmak Shrishti , sadar naman
जवाब देंहटाएंAbhar!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर पंक्ति...''निर्मम नियति के
जवाब देंहटाएंआगे सभी हैं आज बहुत
ही लाचार, चारों
तरफ टूटते
सांसों
के मध्य मानवता करती है हाहाकार'' क्या कहें और किससे कहें असहायता की ये स्थिति पूरी मानवता के लिपरीक्षा की घड़ी है शांतनु जी
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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