25 अप्रैल, 2021

शून्य दृष्टि - -

अंतरतम को बेध जाती है जीवन की
शून्य दृष्टि, निर्मम नियति के
आगे सभी हैं आज बहुत
ही लाचार, चारों
तरफ टूटते
सांसों
के मध्य मानवता करती है हाहाकार,
कोई मिटाए चला हो जैसे अपने
ही हाथों, अपनी बनाई हुई
ख़ूबसूरत सृष्टि,
अंतरतम
को
बेध जाती है जीवन की शून्य दृष्टि।
आज मुस्कराहट में भी, दर्द का
है एक अदृश्य समावेश,
आज हैं हम आमने
सामने, चाहते
हैं कुछ
पल
का कथोपकथन, कल नीरवता के
सिवाय कुछ भी न रहे हमारे
मध्य अवशेष, फिर भी
सब कुछ ख़त्म
नहीं होगा,
मरू -
धरा अपनी जगह है अडिग, इस
जीवन की प्यास है अंतहीन,
कहीं न कहीं से खोज ही
लाएगा वो एक दिन,
अविरत धाराओं
में टूट कर
बरसती
 हुई
महा वृष्टि, अंतरतम को बेध
जाती है जीवन की
शून्य दृष्टि।

* *
- - शांतनु सान्याल  


 

14 टिप्‍पणियां:

  1. अंतरतम को बेध जाती है जीवन की
    शून्य दृष्टि
    ...बेहतरीन रचना।।।।।

    हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. खूबसूरत भावपूर्ण पंक्तियाँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 26-04 -2021 ) को 'यकीनन तड़प उठते हैं हम '(चर्चा अंक-4048) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. बहुत सुंदर पंक्ति‍...''निर्मम नियति के
    आगे सभी हैं आज बहुत
    ही लाचार, चारों
    तरफ टूटते
    सांसों
    के मध्य मानवता करती है हाहाकार'' क्या कहें और क‍िससे कहें असहायता की ये स्थ‍ित‍ि पूरी मानवता के ल‍िपरीक्षा की घड़ी है शांतनु जी

    जवाब देंहटाएं

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