11 दिसंबर, 2013

कोई ख्वाब बंजारा - -

मुड़ के अब देखने से हासिल कुछ भी नहीं,
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -

* *
- शांतनु सान्याल


1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर प्रस्तुति।
    आज 11-12-13 का सुखद संयोंग है।
    सुप्रभात...।
    आपका बुधवार मंगलकारी हो।

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