22 अप्रैल, 2021

पतझर का अवसान - -

शून्य आंगन में बिखरे पड़े हैं सूखे पत्ते,
टूटे पड़े हैं बांस के घेरे, असमय का
पतझर कर चला है दूर तक
अरण्य को सुनसान,
धूम्रवत सा छाया
हुआ है हर
तरफ,
जीवन खोजता है एक टुकड़ा आसमान,
इस दहन काल में भी सिंहासन का
खेल है जारी, हाहाकार करती
हुई जनता की कौन यहाँ
सुध लेगा, औषधि
से लेकर प्राण -
वायु की
हो
जहाँ काला बाज़ारी, शहर गांव सभी की
समान सी है लाचारी, फिर भी जीने
की अदम्य अभिलाष, बुझने
नहीं देती अंतिम आस,
इस मृत्युकाल का
एक दिन ज़रूर
होगा परिपूर्ण
अवसान,  
असमय का पतझर कर चला है दूर तक
अरण्य को सुनसान - -

* *
- - शांतनु सान्याल

   
 

9 टिप्‍पणियां:

  1. इस मृत्युकाल का
    एक दिन ज़रूर
    होगा परिपूर्ण
    अवसान,

    परमात्मा वो दिन जल्द दिखाए, सादर नमन

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  2. जीवन खोजता है एक टुकड़ा आसमान...इस एक वाक्य ने सम्पूर्ण जीव जगत को समेट लिया। कितने ही चेहरे आँखों के सामने जीवंत हो उठे।
    सराहनीय सृजन सर।
    सादर

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  3. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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