अगिनत योजन, असंख्य कोस चलने
के बाद भी उस टीले पर वो अकेला
ही रहा, न जाने किस मोड़ से
मुड़ गए सभी परचित
चेहरे, कोहरे में
बाक़ी हैं
कुछ
तैरते हुए उँगलियों के निशान, जन्म -
जन्मांतर की पहेलियां रहस्य की
गुफ़ाओं में हैं अंकित, जान
पाए कोई तो हो जाए
निहाल, वरना
सोच लो
कि
ये जीवन महज इक माटी का ढेला ही
रहा, अगिनत योजन, असंख्य
कोस चलने के बाद भी उस
टीले पर वो अकेला
ही रहा। सुदूर
लहराता
सा
है अतृप्त चाहतों का पारावार, कुछ -
तैरते हुए रंगीन प्रवाल द्वीप,
कुछ डूबते उभरते हुए
स्वप्निल अंध -
मीन, उन
सब के
मध्य
से निकलता है कहीं अतल सत्य का
संसार, जो पा जाए आत्म मंथन
का सार, उसके लिए जीवन
इक मौसमी मेला ही
रहा, अगिनत
योजन,
असंख्य कोस चलने के बाद भी उस
टीले पर वो अकेला
ही रहा - -
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाक़ई यह जीवन महज़ मिट्टी का एक ढेला ही है। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंएकाकी हृदय की व्यथा सुंदरता से उकेरी है। सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंये जीवन महज इक माटी का ढेला ही
जवाब देंहटाएंरहा, अगिनत योजन, असंख्य
कोस चलने के बाद भी उस
टीले पर वो अकेला
ही रहा
एकदम सटीक...
बहुत ही सुन्दर सृजन।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअसंख्य कोस चलने के बाद भी उस
जवाब देंहटाएंटीले पर वो अकेला
ही रहा - -जीवन का दर्शन...भी यही है...हम कहीं नहीं जाते...हम वहीं घूमते रहते है, हल्की सी उम्र, भारी से सपने...और मुस्कुराते नजर आती जिंदगी। अच्छी रचना है सर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजीवन की सच्चाई को बयाँ करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुदूर लहराता सा है अतृप्त चाहतों का पारावार, कुछ -तैरते हुए रंगीन प्रवाल द्वीप,कुछ डूबते उभरते हुए
जवाब देंहटाएंस्वप्निल अंध -मीन,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ये प्रवाल द्वीप ही सम्मोहन का कारण है । और मानव इच्छाएं उसे अंध मीन जैसे ही भटकाता है।
लाजवाब सृजन।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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