30 अप्रैल, 2014

आख़री पहर - -

न जाने क्यों वो सो न सका 
रात भर, मुझ से मिलने 
के बाद, चाँद भी 
उभरा 
हमेशा की तरह बादलों से 
आख़री पहर, गुम सी 
रही कशिश गुलों 
की, न जाने 
क्यूँ - 
खिलने के बाद, गुमशुदा - - 
सी चाँदनी, आसमां 
भी रहा जलता 
बुझता 
तमाम रात, बेअसर से रहे 
फिर भी, न जाने क्यूँ 
दिल के जज़्बात,
बूँद बूँद ओस 
पिघलने 
के - 
बाद,  न जाने क्यों वो सो - - 
न सका रात भर, मुझ 
से मिलने के 
बाद, 

* * 
- शांतनु सान्याल 





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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-05-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

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  2. रही कशिश गुलों
    की, न जाने
    क्यूँ -
    खिलने के बाद, गुमशुदा - -
    सी चाँदनी, आसमां
    भी रहा जलता
    बुझता

    बेहतरीन।

    जवाब देंहटाएं
  3. असंख्य धन्यवाद - - माननीय मित्रों - - नमन सह

    जवाब देंहटाएं

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