17 अप्रैल, 2014

वो नज़दीकियां - -

वो नज़दीकियां जो थीं दरमियां  
अपने रहने दे उसे, यूँ ही 
ज़माने की नज़र 
से ओझल,
कुछ 
पोशीदगी ज़रूरी है ज़िन्दगी में, 
उन्हें पसंद नहीं कोहरे में 
छुपी वादियां, कैसे 
बताएं उनको 
राज़ ए 
ख़ूबसूरती, ख़ामोश निगाहों की 
बंदगी में, जलते बुझते 
रहे चिराग़ ए 
मुहोब्बत,
न जाने कहाँ कहाँ, हम भटका -
किए उम्र भर उनकी 
दीवानगी में,
कभी 
समंदर का साहिल, कभी तपते 
रेत के टीले, इक राहत ए 
अहसास रहा फिर भी 
अनबुझ तिश्नगी 
में - - 


* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by buyuk

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