तमाम रात जागती रहीं आँखें,
हर एक पल ख़्वाबों ने
दी दस्तक, फिर
भी न जाने
क्यों
दिल के दरवाज़े खुल न पाए !
तमाम रात, मेरी रूह
भटकती रही
जुगनुओं
के
हमराह, नम साहिलों से उठ -
कर सफ़ेद बादलों की
जानिब फिर
भी न
जाने क्यों, कोहरा ए जज़्बात
क़तरा ए अश्क में ढल
न पाए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by mary maxam
हर एक पल ख़्वाबों ने
दी दस्तक, फिर
भी न जाने
क्यों
दिल के दरवाज़े खुल न पाए !
तमाम रात, मेरी रूह
भटकती रही
जुगनुओं
के
हमराह, नम साहिलों से उठ -
कर सफ़ेद बादलों की
जानिब फिर
भी न
जाने क्यों, कोहरा ए जज़्बात
क़तरा ए अश्क में ढल
न पाए - -
* *
- शांतनु सान्याल
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