07 अप्रैल, 2014

अनदेखा सा ख्वाब - -

डूबते सूरज ने फिर दी है रात को
शुभकामनाएं, अंधेरों से कह
दे कोई, ज़रा देर से
क़रीब आएं,
कुछ
पेशतर हो घना उनके मुहोब्बत
के साए, बिखरने दें कुछ
और ज़रा ख़ुश्बुओं
को हवाओं में
मद्धम -
मद्धम, फिर कोई मेरी निगाहों में
अनदेखा सा ख्वाब सजाएं,
यूँ तो ज़िन्दगी में
दर्द ओ ग़म
की कोई
कमी नहीं, किसी एक लम्हा ही
सही, दूर चाँदनी के लहर
में कोई मुझे यूँ ही
बहा ले जाएं,
जहाँ
खिलते हों जज़्बात के ख़ूबसूरत
फूल, रात ढलते - -

* *
- शांतनु सान्याल


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