वो काग़ज़ के फूल थे या कोई
फ़रेब ए नज़र, उसकी
हर बात पे यक़ीं
था लाज़िम,
हमने
बेफ़िक्र हो, ज़िन्दगी उसके -
नाम कर दी, यूँ तो सफ़र
में फूलों से लदी,
वादियों की
कमी न
थी, फिर भी हमने, न जाने
क्यूँ उसकी चाहत में,
काँटों के साए,
उम्र यूँ
ही तमाम कर दी, ये सच है
कहीं न कहीं, उसकी
मुहोब्बत में थी
ख़ुश्बू ए
वफ़ा
की ज़रा सी कमी, महसूस -
करने की ख्वाहिश में
उसे, मुक्कमल
वजूद
अपना यूँही गुमनाम कर दी,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
beauty of daisy
फ़रेब ए नज़र, उसकी
हर बात पे यक़ीं
था लाज़िम,
हमने
बेफ़िक्र हो, ज़िन्दगी उसके -
नाम कर दी, यूँ तो सफ़र
में फूलों से लदी,
वादियों की
कमी न
थी, फिर भी हमने, न जाने
क्यूँ उसकी चाहत में,
काँटों के साए,
उम्र यूँ
ही तमाम कर दी, ये सच है
कहीं न कहीं, उसकी
मुहोब्बत में थी
ख़ुश्बू ए
वफ़ा
की ज़रा सी कमी, महसूस -
करने की ख्वाहिश में
उसे, मुक्कमल
वजूद
अपना यूँही गुमनाम कर दी,
* *
- शांतनु सान्याल
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beauty of daisy
thanks a lot respected friend - -
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