बढ़ चले हैं जाने किस ओर कोहरे
के घने बादल, ज़मीं और
आसमां के बीच है
कोई ख़ामोश
समझौता,
या
जिस्म और जां के दरमियां है - -
कोई रहस्यमयी संधि,
कुछ देर और यूँ
ही सूखने दे
ख़्वाबों
के
नाज़ुक सुराही, प्यास बुझाने से -
पहले न बिखर जाएँ कहीं,
क़ीमती क़तरें ! न
खींच दिलों के
बीच कोई
लकीरें
बहोत मुश्किल से मिलती हैं एक
दूसरे से, मुहोब्बत भरी
तक़दीरें - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
approaching fog in midnight
के घने बादल, ज़मीं और
आसमां के बीच है
कोई ख़ामोश
समझौता,
या
जिस्म और जां के दरमियां है - -
कोई रहस्यमयी संधि,
कुछ देर और यूँ
ही सूखने दे
ख़्वाबों
के
नाज़ुक सुराही, प्यास बुझाने से -
पहले न बिखर जाएँ कहीं,
क़ीमती क़तरें ! न
खींच दिलों के
बीच कोई
लकीरें
बहोत मुश्किल से मिलती हैं एक
दूसरे से, मुहोब्बत भरी
तक़दीरें - -
* *
- शांतनु सान्याल
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approaching fog in midnight
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