कुछ भी नहीं इस जहाँ में पायदार,
ताश के पत्तों से बने हैं तमाम
मंज़िलें, इक हलकी सी
हवा काफ़ी है सब
कुछ बिखरने
के लिए,
फिर न जाने कहाँ है मुश्किल जो
तुझे रात भर सोने नहीं देती,
आईना से यूँ शिकायत
ठीक नहीं, शफ़ाफ़
दिल है
काफ़ी तेरे सँवरने के लिए, क्यों -
इतना है तू दीवाना रंग
ओ नूर के पीछे,
ज़ख़्मी
जिगर में मेरे, है नशा काफ़ी बिन
पिए यूँ ही बहकने के लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
fragrant breeze
ताश के पत्तों से बने हैं तमाम
मंज़िलें, इक हलकी सी
हवा काफ़ी है सब
कुछ बिखरने
के लिए,
फिर न जाने कहाँ है मुश्किल जो
तुझे रात भर सोने नहीं देती,
आईना से यूँ शिकायत
ठीक नहीं, शफ़ाफ़
दिल है
काफ़ी तेरे सँवरने के लिए, क्यों -
इतना है तू दीवाना रंग
ओ नूर के पीछे,
ज़ख़्मी
जिगर में मेरे, है नशा काफ़ी बिन
पिए यूँ ही बहकने के लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
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