न जाने क्यों वो सो न सका
रात भर, मुझ से मिलने
के बाद, चाँद भी
उभरा
हमेशा की तरह बादलों से
आख़री पहर, गुम सी
रही कशिश गुलों
की, न जाने
क्यूँ -
खिलने के बाद, गुमशुदा - -
सी चाँदनी, आसमां
भी रहा जलता
बुझता
तमाम रात, बेअसर से रहे
फिर भी, न जाने क्यूँ
दिल के जज़्बात,
बूँद बूँद ओस
पिघलने
के -
बाद, न जाने क्यों वो सो - -
न सका रात भर, मुझ
से मिलने के
बाद,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
still-life-tulips
रात भर, मुझ से मिलने
के बाद, चाँद भी
उभरा
हमेशा की तरह बादलों से
आख़री पहर, गुम सी
रही कशिश गुलों
की, न जाने
क्यूँ -
खिलने के बाद, गुमशुदा - -
सी चाँदनी, आसमां
भी रहा जलता
बुझता
तमाम रात, बेअसर से रहे
फिर भी, न जाने क्यूँ
दिल के जज़्बात,
बूँद बूँद ओस
पिघलने
के -
बाद, न जाने क्यों वो सो - -
न सका रात भर, मुझ
से मिलने के
बाद,
* *
- शांतनु सान्याल
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-05-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
prem mein pagi acchi abhivyakti
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
रही कशिश गुलों
जवाब देंहटाएंकी, न जाने
क्यूँ -
खिलने के बाद, गुमशुदा - -
सी चाँदनी, आसमां
भी रहा जलता
बुझता
बेहतरीन।
असंख्य धन्यवाद - - माननीय मित्रों - - नमन सह
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