23 अप्रैल, 2014

महकते अहसास - -

हथेली की इन उलझी हुई लकीरों 
से निकल, देखा है तुझे ऐ 
ज़िन्दगी जुगनू की 
तरह उड़ते 
हुए !
कभी दरख़्त ख़िज़ाँ की शाखों में,
कभी बूंद बूंद बिखरते हुए 
किसी की ख़ूबसूरत 
आँखों में, वो 
आँसू थे 
या -
नम जज़्बात या अक्स मोती के, 
जलते बुझते रहे देर तक, 
उसकी पलकों में 
मुहोब्बत के 
चिराग़ 
जादू भरे, देर तक मेरी साँसों में 
खिलती रही फूलों की 
क्यारियां - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
streak of emotion

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