हथेली की इन उलझी हुई लकीरों
से निकल, देखा है तुझे ऐ
ज़िन्दगी जुगनू की
तरह उड़ते
हुए !
कभी दरख़्त ख़िज़ाँ की शाखों में,
कभी बूंद बूंद बिखरते हुए
किसी की ख़ूबसूरत
आँखों में, वो
आँसू थे
या -
नम जज़्बात या अक्स मोती के,
जलते बुझते रहे देर तक,
उसकी पलकों में
मुहोब्बत के
चिराग़
जादू भरे, देर तक मेरी साँसों में
खिलती रही फूलों की
क्यारियां - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
streak of emotion
से निकल, देखा है तुझे ऐ
ज़िन्दगी जुगनू की
तरह उड़ते
हुए !
कभी दरख़्त ख़िज़ाँ की शाखों में,
कभी बूंद बूंद बिखरते हुए
किसी की ख़ूबसूरत
आँखों में, वो
आँसू थे
या -
नम जज़्बात या अक्स मोती के,
जलते बुझते रहे देर तक,
उसकी पलकों में
मुहोब्बत के
चिराग़
जादू भरे, देर तक मेरी साँसों में
खिलती रही फूलों की
क्यारियां - -
* *
- शांतनु सान्याल
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