सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न श्रूयतेमुक्ताकारतया तदेव नळिनीपत्रस्थितं दृश्यते ।स्वात्यां सागरशुक्तिमध्यपतितं तन्मौक्तिकं जायतेप्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणः संसर्गतो जायते ॥
- नीतिशतक
गर्म लोहे की प्लेट पर पानी की एक बूंद तुरंत अपना अस्तित्व खो देती है। कमल के पत्ते पर गिराने पर वही बूंद मोती का आकार ले लेती है। लेकिन, समुद्र के बीच में भी, सीप में प्रवेश करने वाली पानी की एक बूंद असली मोती में बदल कर अपनी नियति को प्राप्त कर लेती है। कालान्तर में किसी व्यक्ति का मनहूस, औसत या असाधारण बनना उसकी संगति पर निर्भर करता है।
গরম লোহার থালায় এক ফোঁটা জল অবিলম্বে অস্তিত্ব হারায়। পদ্ম পাতায় পড়লে একই শরত মুক্তোর মতো হয়। কিন্তু, এমনকি সমুদ্রের মাঝখানে, ঝিনুকের মধ্যে প্রবেশ করা জলের একটি ফোঁটা প্রাকৃতিক মুক্তোতে পরিণত করে তার ভাগ্য অর্জন করে। সময়ের সাথে সাথে, একজন ব্যক্তি একজন হতভাগা, একজন গড় বা অসাধারণ একজন হয়ে ওঠেন কেমন সংঘ কিংবা সাথী রাখেন তার উপর নির্ভর করে ।
A drop of water on a hot
iron plate immediately loses existence. The same fall is shaped like a
pearl when dropped on a lotus leaf. But, even in the middle of the ocean, a drop
of water that enters the oyster achieves its destiny by turning it into a natural
pearl. In time, a person becoming a wretched one, an average one or an
extraordinary one depends on the company he keeps.
-Neetishataka
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