मुश्किल है, बहोत तक़दीर का बदलना,
चाहो तो लौट जाओ, अभी तलक
बाम ए हसरत पे चिराग़
नहीं रौशन, अभी
शाम घिरने
में है
कुछ देर और बाक़ी, ये ख़ुदकश अंदाज़ -
कहीं कर न जाए तुम्हें बर्बाद
मुकम्मल, रहने भी दो
नाज़ुक दिल को
अध खिले
गुल की मानिंद, कहीं सुलग कर ख़ाक न
हो जाए, बहोत जानलेवा है ये इश्क़
शबनमी, छीन लेगी ख़ुशगवार
सुबह, रख जाएगी इक
तूफ़ान दायमी,
दिल के
बहोत अन्दर, छोड़ जाएगी कोई बेतरतीब
निशां, बेइन्तहा उम्र भर के लिए - -
बाम - छत
खुदकश - आत्मघाती
आपके ब्लॉग की ताजा पोस्ट पढ़ी। अच्छी हैं। विजिट करें:
जवाब देंहटाएंhttp://consumerfighter.com/
असंख्य धन्यवाद मित्र
जवाब देंहटाएं