बहोत मिन्नतों के बाद हासिल थी दुआओं
की रात, बाहम निकले थे दूर लेकिन
मंज़िल पा न सके, बहोत
नज़दीक थी ख़्वाब
ओ ख़याल की
दुनिया,
महज़ दस्तकों से लौट आईं दिल की बात -
चाहा लाख लेकिन दर्द अपना उसे
दिखला न सके, चार क़दम
थी तोहम आस्ताना,
उसपार फिर भी
जा न सके,
बाहम निकले थे साथ साथ किसी अजनबी
सफ़र में, रात गुज़री, दिन बीते,
मौसम ने बदली करवटें,
उम्र ने ओढ़ा झुर्रियों
का लबादा,
बहोत
क़रीब सांस रोके रही ज़िन्दगी, न जाने क्यूँ
फिर भी उसे अपना बना न सके - -
बाहम - दोनों
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जवाब देंहटाएं:))
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जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद प्रिय मित्रों - - नमन सह
जवाब देंहटाएंमौसम ने बदली करवटें,
जवाब देंहटाएंउम्र ने ओढ़ा झुर्रियों
का लबादा,
बहोत
क़रीब सांस रोके रही ज़िन्दगी, न जाने क्यूँ
फिर भी उसे अपना बना न सके
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