कल्पना से परे
तिश्नगी जो अनंतकाल तक न बुझे, इबादत
वो, जिसकी महक बिखर जाए सातवें
आस्मां तक, बहोत मुश्किल है -
मेरे दोस्त ! मुहोब्बत का
जावेदां होना,
फिर भी न जाने क्यूँ तलाशती है नज़र, आँखों -
में तेरी कल्पना से परे दुनिया, वो जो
ग़ायब होके भी है पेश दर पेश,
कहाँ आसां इतना, इक
मुश्त ख़्वाबों का
अब्र आलूद
आस्मां होना - - -
वाह....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत....
लाजवाब रचना शांतनु जी.
अनु
thanks respected friend
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