इक अजीब सा इदराक लिए आँखों में -
वो तकता है मेरी शख्सियत,
आईना कोई आदमक़द
कर जाए मजरूह
अन्दर तक,
उसकी
मासूम नज़र में हैं न जाने कैसी कशिश,
अपने आप उठ जाते हैं दुआओं के
लिए बंधे हाथ, कोई अमीक़
फ़लसफ़ा नहीं यहाँ पर,
उन नमनाक
आँखों में
अक्सर दिखाई देती है ज़िन्दगी अपनी,
चाह कर भी उसे नजरअंदाज़
करना है मुश्किल, वो
अहसास जो
मुझे
ले जाती है बहोत दूर, ईंट पत्थरों से बने
इबादतगाह हैं जहाँ, महज रस्म
अदायगी, मेरी मंज़िल में
बसते हैं सिर्फ़ वो
लोग, जिन्हें
मुहोब्बत
के सिवा कुछ भी मालूम नहीं, वो मासूम
चेहरे जो इंसानियत के अलावा कुछ
नहीं जानते - -
जिन्हें मुहब्बत मालूम है...उनका चेहरा ही आदमकद आईने में उभरता है
जवाब देंहटाएंवो मासूम चेहरे जो इंसानियत के सिवा कुछ नहीं जानते ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ही होगी वह जगह और लोंग भी !
उर्दू के शब्दार्थ से नज़्म में उतरने में सुविधा रही .
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अगणित धन्यवाद माननीय मित्रों - नमन सह
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइक अजीब सा इदराक लिए आँखों में -
वो तकता है मेरी शख्सियत,
आईना कोई आदमक़द
कर जाए मजरूह
अन्दर तक,
उसकी
मासूम नज़र में हैं न जाने कैसी कशिश,
अपने आप उठ जाते हैं दुआओं के
लिए बंधे हाथ, कोई अमीक़
फ़लसफ़ा नहीं यहाँ पर,
उन नमनाक
आँखों में
अक्सर दिखाई देती है ज़िन्दगी अपनी,
चाह कर भी उसे नजरअंदाज़
करना है मुश्किल, वो
अहसास जो
मुझे
ले जाती है बहोत(बहुत ) दूर, ईंट पत्थरों से बने...........बहुत
,,इबादतगाह हैं जहाँ, महज रस्म
अदायगी, मेरी मंज़िल में
बसते हैं सिर्फ़ वो
लोग, जिन्हें
मुहोब्बत ..........मोहब्बत
के सिवा कुछ भी मालूम नहीं, वो मासूम
चेहरे जो इंसानियत के अलावा कुछ
नहीं जानते - -
बढ़िया काव्यात्मक प्रस्तुति अभिनव शिल्प लिए ........