02 सितंबर, 2012

न जाने क्यूँ

कहीं कोई टूटा है तारा , या रात ढले चमकती हैं 
बिजलियाँ, उसकी हर बात में है, बला की 
ख़ूबसूरती, ज़िन्दगी उलझती जाए 
हर लम्हा, इक अज़ीब सी  
कसक है, उसकी आँखों
में, रह रह कर 
पूछतीं हों 
जैसे अनबुझ पहेलियाँ, हर बार पूछता हूँ मैं -
उसके घर का पता, हर बार हलक में 
उठतीं हैं बेखौफ़ हिचकियाँ, वो 
देखते हैं मुझे इस अंदाज़ 
से कि दिल की 
गहराइयों 
में उठते हैं अनचाहे बदलियाँ - - - - 

- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
no idea about painter 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (2-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. बहुत सुन्दर मनभावन रचना...
    अति सुन्दर
    :-)

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  3. वाह|||
    बहुत सुन्दर....
    मनभावन रचना...
    :-)

    जवाब देंहटाएं

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