कहीं कोई टूटा है तारा , या रात ढले चमकती हैं
उठतीं हैं बेखौफ़ हिचकियाँ, वो
बिजलियाँ, उसकी हर बात में है, बला की
ख़ूबसूरती, ज़िन्दगी उलझती जाए
हर लम्हा, इक अज़ीब सी
कसक है, उसकी आँखों
में, रह रह कर
पूछतीं हों
जैसे अनबुझ पहेलियाँ, हर बार पूछता हूँ मैं -
उसके घर का पता, हर बार हलक में
देखते हैं मुझे इस अंदाज़
से कि दिल की
गहराइयों
में उठते हैं अनचाहे बदलियाँ - - - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
no idea about painter http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (2-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
thanks respected friend
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनभावन रचना...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
:-)
वाह|||
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
मनभावन रचना...
:-)
thanks a lot respected friend
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत......
अनु