वो लचक कहाँ बाक़ी गुल झरने के बाद,
तर्जुमा ए जज़्बात चाहे जो भी हो -
इक ख़ुमार सा तारी रहा देर
तक, हालाकि दिल था
ग़मगीन उससे
बिछड़ने के
बाद,
अब किसे ख़बर, कौन होगा मुताशिर -
ख़ुश्बू ए मुहोब्बत बिखरने के
बाद, उसकी हर सांस में
जैसे उठती रहीं रह
रह कर कोई
ख़ुफ़िया
तरन्नुम, अब ज़मीं ओ आसमां सब
लगे एक से, किसे मालूम क्या
है ख़लाओं में, जिस्म से
रूह निकलने के
बाद - - -
- शांतनु सान्याल
तर्जुमा ए जज़्बात चाहे जो भी हो -
इक ख़ुमार सा तारी रहा देर
तक, हालाकि दिल था
ग़मगीन उससे
बिछड़ने के
बाद,
अब किसे ख़बर, कौन होगा मुताशिर -
ख़ुश्बू ए मुहोब्बत बिखरने के
बाद, उसकी हर सांस में
जैसे उठती रहीं रह
रह कर कोई
ख़ुफ़िया
तरन्नुम, अब ज़मीं ओ आसमां सब
लगे एक से, किसे मालूम क्या
है ख़लाओं में, जिस्म से
रूह निकलने के
बाद - - -
- शांतनु सान्याल
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