कोई राज़ गहरा
दिल की गहराइयों में थे, वो सभी ताउम्र ठहरे,
उनकी नज़र में इश्क़ उतरन से नहीं ज़ियादा
ये वो ज़ेवर हैं, जो पिघल कर और भी निखरे,
अनबुझी प्यास है ज़िन्दगी, रहे हमेशा यूँ ही !
डूबने की चाहत बहुत, झील कहाँ उतने गहरे,
उसने छुआ था कभी इस नफ़ासत से दिल को,
कि लाजवाब से देखते रहे वक़्त के सभी पहरे,
उसकी छुअन में था शायद, कोई राज़ गहरा !
साँस तो गुज़र गई, जिस्म घेरे रहे घने कोहरे,
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
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