दो पल ही सही
चलो जी लें ज़रा, भीगे लम्हों में दो पल
फिर कल ये बदलियाँ घिरे न घिरे,
किसे ख़बर कब तक रुके, ये
बंजारों के ख़ेमे, आज
गुज़र जाएँ दो
स्तंभों के
दरमियाँ, बेखौफ़ इस तरह कि आह भर
उठे ज़िदगी की स्याह गहराइयाँ,
न कोई सबब पूछ मेरी
गुस्ताख़ियों का,
बिखर भी
जाने दे,
मुझे वादियों में प्यासे सावन की तरह !
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