मुहाने के तरफ बह चलीं सभी नौकाएं !
उदास बरगद, स्थिर सी हैं झूलती
जटाएं, मंदिर सोपान छूना
चाहे उद्वेलित नदी -
धारा, पीतवर्णी
उत्तरीय
दिगंत रेखा पर त्याग, बढ़ चला सूर्य -
आकाश पथ पर एकाकी, दिवा -
स्वप्न लिए जीवन बैठा
रहा किनारे पर देर
तक, भावनाएं
या कोई
पुरोहित करे नीरव मंत्रोच्चार, गर्भ गृह
में पाषाणी भाव जैसे हो चले हों
जागृत, सतत परिक्रमा !
जन्म व मृत्यु, कभी
अंधकार आगे
और कभी
आलोक, बिहान और सांझ के दरमियान
एक संधि, अविराम बहाव महा -
सिन्धु की ओर, परिपूर्ण
निमज्जन, महा
अपरिग्रह,
निखिल निवृत्ति, न कोई निकट, न कोई
अपरिचित, सभी चेहरे मुखौटे विहीन,
सभी अपने और सभी पराये,
अंतहीन पथ के पथिक
सब, संभव है पुनः
मिले किसी
घाट पर,
अप्रत्याशित छिन्न पालदार नौकाओं के साथ - -
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