12 जुलाई, 2012

नज़्म - - ख्वाहिश इन्तहा


न पूछ मेरी ख्वाहिश इन्तहा
कभी उगता चाँद सा है
बर्फीली चोटियों में
कहीं, और
कभी
डूबता सूरज है तेरी आँखों
के किनारे, ये भीगे
ख़्वाब ही हैं जो
ज़िन्दगी को
खींचते
हैं, हर रात हर सुबह नए -
दहन की तरफ, रोज़
गुज़रता है ये
लिए छाले
भरे
पांव, फिर भी मुस्कुराता
वजूद तेरे पहलू में
आ कर, पल
दो पल - -

- शांतनु सान्याल
   



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कविता है शांतनु दा. आनंद आ गया.

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  2. thanks dhananjay, most probably tomorrow morning i will get back my Facebook account as its locked by Facebook team because some two hackers were tried to hijack it,
    love and regards

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