02 जुलाई, 2012

नज़्म - - गहराइयों में कहीं

महकता राज़ सा है कोई, उसकी बातों में कहीं,
जब भी मिलता है वो, महक सी जाती है
दिल की विरानियाँ दूर तक, इक
ख़ुमार सा रहता है; खुले इत्र
की मानिंद, भीनी भीनी
सी ख़ुश्बू रहती है
देर तक, दिल
की
गहराइयों में कहीं, वो अक्सर जाता है लौट -
लेकर मेरी सांसों की दुनिया, अपने
साथ, लेकिन छोड़ जाता अपनी
परछाइयां, मेरे जिस्म पर
इस तरह कि ज़िन्दगी
चाहती है, चलना
सुलगते आग
पर
नंगे पांव, दूर बहुत दूर, हमराह उसके क़दमों
के निशां, ज़मीं ओ आसमां से बेहतर,
किसी और जहाँ की तरफ
लापरवाह, बेझिझक,
मुसलसल - -
- शांतनु सान्याल  

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