सजल मुस्कान
सघन वर्षा के उपरांत फिर खिली है धूप
या रहस्यभरी मुस्कान कोई, दे रही
पुनः दस्तक ; हृदय द्वार खुल
चले हों जैसे अपने आप,
ये कैसा चित्रलेख,
गुलाब के
पंखुड़ियों में ठहरे हुए बूंदें हैं, या किसी के
सजल व्रत, कौन दे गया बिहान के
धुंधलके में चुपके से प्रणय
पत्र ; या फिर कोई
निशि पुष्प है
बेचैन
सुप्त गंध लिए सीने में, फिर सुरभित हैं
देह प्राण - -
- शांतनु सान्याल
वाह ... बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंसभी आदरणीय मित्रों का धन्यवाद - नमन सह
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