दो ध्रुवों के मध्य
था अंतर बहुत कम, सूर्य का उत्थान
व पतन, दोनों ही जगह थे
लालिमा मौजूद,
उभरना
फिर डूबना, नियति का संविधान सदैव -
अपरिवर्तित, कुछ भी चिरस्थायी
नहीं, उद्गम में ही छुपा था
अंत अदृश्य, उस मोह
में थे लक्ष भंवर,
हर मोड़ पर
नया
रहस्योद्घाटन, कभी अन्तरिक्ष पथ पर
जीवन अवसान, उन दो ध्रुवों
के बीच थे अंतहीन
अभिलाष, एक
गंधित
श्वास, दूजा विलुप्त गामी दीर्घ निःश्वास !
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