महासत्ता
फिर भी जीवन से लम्बी है ये मरीचिका,
अज्ञात स्रोत से निर्गत वो अरण्य गंध या
नभ झरित, उद्भासित आलोक नीहारिका ,
दिग्भ्रमित मृग वृन्द सम, हिय भावना -
वन वन भटके ज्यों अधीर अभिसारिका,
अनहद शीर्ष पर आसीन, वो महासत्ता -
उँगलियों में नचाये जैसे अदृश्य नायिका,
- शांतनु सान्याल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सूंदर
जवाब देंहटाएंदिखा गयी
हमें भी एक झलक
सुंदर अदृ्श्य नायिका !!
सभी आदरणीय मित्रों का धन्यवाद - नमन सह
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