हर सिम्त इक ख़्वाब आलूदगी, हर तरफ छाए
ख़ुमार अनजाना, न ज़मीं पे क़दम न
आसमाँ ही नज़र आए, ये कैसा
अह्सासे तिलस्म, जो
आँखों से उतर कर
होश उड़ा जाए,
ले चला
न जाने कौन मुझे, इशारों की ज़बां में उलझाए, ये
कैसी हम आहंगी, दिल की गहराइयों में बस
कर, निगाहों से कतराए, न पूछे कोई
बहकने का सबब मुझसे, बिन
पीये क़दम जाएँ हैं यूँ
लडखडाए, छू तो
लूँ ख़लाओं
से लौटती सदाओं को बेसब्र हो कर, काश घूमती
ज़मीं पल भर को रुक जाए, उनकी आँखों
में है नूर ए दरिया, कोई जा के उनसे
तो कहे किसी दिन के लिए ही
सही, इक लम्हा निगाहे
करम मेरी ओर
ज़रा झुक
जाए - - -
- शांतनु सान्याल
अरबी / फारसी शब्द
सिम्त - तरफ
ख़्वाब आलूदगी - स्वप्निल
तिलस्म - जादू
हम आहंगी - समन्वय
खला - शून्य
नूरे दरिया - आलोक झरना
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