देख लूँ ज़रा, ऐ ज़िन्दगी तुझे क़रीब से,
फिर झर रही है चांदनी; दर्दे मेहराब
से, यूँ रुक रुक कर, गोया छू
जाए है ; ज़ख्म ताज़ा
कोई, न जा दूर
कहीं; कि
सुन न पाए सांसों के तरन्नुम, अभी अभी तो -
जगे हैं सभी सोये हुए अरमां, ख़ुमार -
आलूदा जज़्बात को ज़रा और
संभल जाने दे, कुछ देर
यूँ ही और जले
निगाहों के
शमा, कुछ और नज़दीकियों को पिघल जाने दे,
- शांतनु सान्याल
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