22 अगस्त, 2012

पल भर में


मेरी आँखों से जो बूंद गिरे, न थे वो शबनम,  
न ही कोई क़ीमती जवाहिर, तेरी दामन
की पनाह थी शायद सीप की चाहत,
जो रात ढलते मोतियों में यूँ 
सभी तब्दील हो
गए !
मेरा वजूद था, समंदर का ख़ामोश किनारा, 
सीने में लिए कोई आग गहरा, तेरी 
मौज ए मुहोब्बत में थी वो 
ताशीर, कि सभी संग - 
ए अज़ाब, पल भर 
में असील हो
गए !

- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/


painting - Sea coast. Wave - Ivan Aivazovsky 

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