मेरी आँखों से जो बूंद गिरे, न थे वो शबनम,
न ही कोई क़ीमती जवाहिर, तेरी दामन
की पनाह थी शायद सीप की चाहत,
जो रात ढलते मोतियों में यूँ
सभी तब्दील हो
गए !
मेरा वजूद था, समंदर का ख़ामोश किनारा,
सीने में लिए कोई आग गहरा, तेरी
मौज ए मुहोब्बत में थी वो
ताशीर, कि सभी संग -
ए अज़ाब, पल भर
में असील हो
गए !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
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वाह क्या कहने..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
thanks respected friend - naman sah
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