वो सुबह जिसकी तलाश में ताउम्र खुली -
रहीं निगाहें, न रात ही ढली न तुम आये,
तक़रीबन उजड़ने को है,दिल की दुनिया
न तुमने कुछ कहा, न हम ही जान पाए,
वो राज़ जो दफ़न हैं जनम लेने से पहले
नदारद है रूह,सिर्फ़ बैठे हैं जिस्म सजाये,
तुम भी अलहदा कहाँ हो, दौर ए जहाँ से
नाहक़ किसी के इश्क़ में यूँ आंसू बहाए,
रात ओ मेरा वजूद हैं, हम आहंग बहोत -
काश, सफ़र ए तीरगी तन्हा गुज़र जाये,
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
painting by CAROL SCHIFF
पोस्ट करते वक्त शीर्षक के लिए सबसे ऊपर अलग स्थान होता है। शीर्षक 'सफर ए तीरगी' वहीं लिखते तो सही रहता।
जवाब देंहटाएंतुम भी अलहदा कहाँ हो, दौर ए जहाँ से
जवाब देंहटाएंनाहक़ किसी के इश्क़ में यूँ आंसू बहाए,...
वाह क्या बात है ... सब एक से हैं इस ज़माने में ... लाजवाब ..
देवेन्द्र जी, सुझाव के लिए असंख्य धन्यवाद, मैं उसे दोबारा ठीक कर देता हूँ l नमन सह
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