14 अगस्त, 2012

सफ़र ए तीरगी


वो सुबह जिसकी तलाश में ताउम्र खुली -
रहीं निगाहें, न रात ही ढली न तुम आये,

तक़रीबन उजड़ने को है,दिल की दुनिया
न तुमने कुछ कहा, न हम ही जान पाए,

वो राज़ जो दफ़न हैं जनम लेने से पहले
नदारद है रूह,सिर्फ़ बैठे हैं जिस्म सजाये,

तुम भी अलहदा कहाँ हो, दौर ए जहाँ से
नाहक़ किसी के इश्क़ में यूँ आंसू बहाए,

रात ओ मेरा वजूद हैं, हम आहंग बहोत -
काश, सफ़र ए तीरगी  तन्हा गुज़र जाये,

- शांतनु सान्याल

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
painting by CAROL SCHIFF

3 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट करते वक्त शीर्षक के लिए सबसे ऊपर अलग स्थान होता है। शीर्षक 'सफर ए तीरगी' वहीं लिखते तो सही रहता।

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  2. तुम भी अलहदा कहाँ हो, दौर ए जहाँ से
    नाहक़ किसी के इश्क़ में यूँ आंसू बहाए,...

    वाह क्या बात है ... सब एक से हैं इस ज़माने में ... लाजवाब ..

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  3. देवेन्द्र जी, सुझाव के लिए असंख्य धन्यवाद, मैं उसे दोबारा ठीक कर देता हूँ l नमन सह

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