दो लफ़्ज़
कोई ख़ूबसूरत पैकर, दिल में तब जागते
हैं परस्तिश, तसव्वुर से कहीं आगे,
हर इन्सान जहाँ लगे यकसां,
हर लब पे खिले मुस्कान
दुआओं वाले, चेहरे
पर उभरे वो
पाकीज़गी मुस्तक़ल, झुक जाएँ ज़ालिमों के
सर अपने आप, ये ख़ुदा दे मुझे वो
रहमत कि हर सांस में हों
इंसानियत रवां,
कि हर
चेहरे पे देखूं तेरा ही अक्श, नूर ए आबशार,
- शांतनु सान्याल
...आमीन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंनमन सह - - धन्यवाद, माननीय मित्रों
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