सांझ के धुंधलके में देखा है, अक्सर उस चेहरे
से उभरती हुई ज़िन्दगी, सूरज डूबने का
मंज़र हो चाहे कितना ही ख़ूबसूरत,
लेकिन उसके आते ही खिल
जाती हैं हर तरफ शब
ए गुल की उदास
क्यारियां,
रात उतरती है नीली पहाड़ियों से मद्धम मद्धम,
महक जाती हैं दिल की धड़कन, बोलतीं
सी हैं सभी बेज़ान परछाइयाँ, न
जाने क्या तिलिस्म सा है
उसकी निगाहों में ऐ
दोस्त! बहुत
कुछ
चाह कर भी ख़ामोश रहती है बेक़रार मेरी ज़ुबां,
उन ठहरे लम्हों में ज़िन्दगी तलाश करती
है खोया हुआ वजूद अपना, बूंद बूंद
ख़्वाब की ज़मीं, क़तरा क़तरा
आस्मां, नूर दर नूर
उसके इश्क़ का
निशां !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंसहस्त्र धन्यवाद आदरणीय मित्रों - - नमन सह
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