गुमसुम सा है अक्स मेरा आजकल ! या
बाज़गश्त सदाओं से है खौफ़ज़दा,
इक तराज़ू नादीद, निगाहों
के आगे डोलता है
रात दिन
लिए
सीने में कोई सवाल अलामत ! दफ़न -
फ़ैसला गोया होने को है, मंज़र -
आम, गुनाह ओ सवाब के
दरमियाँ झूलती है
ज़िन्दगी, उस
नक्श
पोशीदा से किनाराकशी नहीं आसां, किस
चिलमन से निकल आएगी तीर ए
आतिश, बेहतर ख़ुदा जाने !
उस मुहोब्बत का राज़
है लामहदूद गहरा,
उम्र गुज़र
जाए
डूब के उभरने में - -
नादीद - अदृश्य
बाज़गश्त - लौटती
अलामत - प्रतीक
सवाब - पुण्य
लामहदूद - अंतहीन
बाज़गश्त - लौटती
अलामत - प्रतीक
सवाब - पुण्य
लामहदूद - अंतहीन
गज़ब..! बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥
असंख्य धन्यवाद मित्रों - नमन सह
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