11 सितंबर, 2012

किसी के लिए - -

इज़हार मेरा शायद न रास आए उनको, रहने
भी दे वहम दिल में मेरी बेज़ुबानी का, 
उस नुक्कड़ में शरेआम लुट 
चुका हूँ मैं कई बार,
तमाशबीन 
की 
फ़ेहरिस्त है बहोत लम्बी, बयां करते न गुज़र 
जाए उम्र सारी, ये भी सच है कि सब से 
ऊपर था नाम उनका, जो खाते 
रहे क़सम मेरी इश्क़ ओ 
जवानी का, बहोत 
मुश्किल है 
राज़ ए
जज़्बात का ज़ाहिर ए आम होना, कौन है जो 
चाहेगा, किसी और के लिए मिट कर 
यूँ तमाम होना - - 

- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

painting by Ivan Aivazovsky Resimleri 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past