इज़हार मेरा शायद न रास आए उनको, रहने
भी दे वहम दिल में मेरी बेज़ुबानी का,
उस नुक्कड़ में शरेआम लुट
चुका हूँ मैं कई बार,
तमाशबीन
की
फ़ेहरिस्त है बहोत लम्बी, बयां करते न गुज़र
जाए उम्र सारी, ये भी सच है कि सब से
ऊपर था नाम उनका, जो खाते
रहे क़सम मेरी इश्क़ ओ
जवानी का, बहोत
मुश्किल है
राज़ ए
जज़्बात का ज़ाहिर ए आम होना, कौन है जो
चाहेगा, किसी और के लिए मिट कर
यूँ तमाम होना - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें