17 मई, 2014

अंततः - -

अंततः तमाम रास्ते पहुँचते हैं वहीँ 
जहाँ से होता है जीवन का 
उद्भव, अंकुरण और 
बिखराव के 
मध्य, 
कहीं न कहीं हम जुड़े रहे सुरभित -
समीर के संग, अदृश्य प्रणय 
बंध में एकाकार, वो 
सूत्रधार कोई 
और न 
था नियति के सिवाय, जो रहा हर 
पल नेपथ्य में मूक दर्शक बन, 
समय का अपना ही है 
आकलन, बहुत 
कठिन है 
हल करना, धुप - छाँव का ये गहन 
समीकरण - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
the most beautiful painting ever

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-05-2014) को "पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1615) (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. वाह. बहुत सुन्दर रचना.

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  3. असंख्य धन्यवाद मान्यनीय मित्रों - - नमन सह

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