वो दर्द ही था, जो रहा उम्र भर
बावफ़ा, बहोत नज़दीक
मेरे, वरना कौन
साथ देता
है यूँ
ग़म की अँधेरी रातों में, चेहरे
सभी लगे यकसां, जो भी
मिले, ज़िन्दगी के
सफ़र में,
वही
छुपी हुई घातें, वही मरमोज़
ए नज़र थी, उनकी बातों
में, कहते हैं कि यक़ीं,
पत्थर में भी,
अक्स ए
ख़ुदा
तस्लीम करे, यही वजह थी
कि हमने सब कुछ
निसार किया
उनकी
छुपी हुई ख़ूबसूरत घातों में -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
floating art
बावफ़ा, बहोत नज़दीक
मेरे, वरना कौन
साथ देता
है यूँ
ग़म की अँधेरी रातों में, चेहरे
सभी लगे यकसां, जो भी
मिले, ज़िन्दगी के
सफ़र में,
वही
छुपी हुई घातें, वही मरमोज़
ए नज़र थी, उनकी बातों
में, कहते हैं कि यक़ीं,
पत्थर में भी,
अक्स ए
ख़ुदा
तस्लीम करे, यही वजह थी
कि हमने सब कुछ
निसार किया
उनकी
छुपी हुई ख़ूबसूरत घातों में -
* *
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