कहाँ हर चीज़ है मय्यसर बर अक्स
ख़्वाहिश के, कुछ न कुछ
समझौता ज़रूरी है
ज़िन्दगी में,
देखा है
कई बार ख़्वाबों को टूट कर दोबारा
उभरते हुए, वो नज़र अंदाज़
नज़रिया तुम्हारा,
मज़ाक़ था
या - -
हक़ीक़ी, जो भी हो, कोई फ़र्क़ नहीं
पड़ता इश्क़ ओ दीवानगी
में, रस्म ए दुनिया
की हैं अपनी
ही
मजबूरियां, निभाएँ वो जिस तरह
से चाहें, मुद्दतों से हमने
छोड़ दिया है सब
कुछ यूँ ही
किसी
के लिए, मरना जीना है बेमानी - -
अनबुझ इस तिश्नगी में,
कुछ न
कुछ समझौता ज़रूरी है ज़िन्दगी में,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
art by willie fulton
ख़्वाहिश के, कुछ न कुछ
समझौता ज़रूरी है
ज़िन्दगी में,
देखा है
कई बार ख़्वाबों को टूट कर दोबारा
उभरते हुए, वो नज़र अंदाज़
नज़रिया तुम्हारा,
मज़ाक़ था
या - -
हक़ीक़ी, जो भी हो, कोई फ़र्क़ नहीं
पड़ता इश्क़ ओ दीवानगी
में, रस्म ए दुनिया
की हैं अपनी
ही
मजबूरियां, निभाएँ वो जिस तरह
से चाहें, मुद्दतों से हमने
छोड़ दिया है सब
कुछ यूँ ही
किसी
के लिए, मरना जीना है बेमानी - -
अनबुझ इस तिश्नगी में,
कुछ न
कुछ समझौता ज़रूरी है ज़िन्दगी में,
* *
- शांतनु सान्याल
art by willie fulton
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें