ये नहीं आख़री मंज़िल, समन्दर के
उस पार भी कुछ जुगनुओं
की मानिंद, चमकते
किनारे हैं
मुंतज़िर, चलो फिर इक बार चलें -
कहीं दूर, किसी उम्मीद की
साहिल में, उतार भी
दो जिस्म ओ
जां से ये
लिबास क़दीमी, उभरने को हैं कुछ
बेताब से आसमानी पैरहन !
मँझधार में आ कर
न देख छूटता
किनारा,
कुछ पाने के लिए ज़िन्दगी में, बहुत
कुछ, खोना भी है लाज़िम,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
Flowers-in-a-Vase1-artist-Paul-Cezanne
उस पार भी कुछ जुगनुओं
की मानिंद, चमकते
किनारे हैं
मुंतज़िर, चलो फिर इक बार चलें -
कहीं दूर, किसी उम्मीद की
साहिल में, उतार भी
दो जिस्म ओ
जां से ये
लिबास क़दीमी, उभरने को हैं कुछ
बेताब से आसमानी पैरहन !
मँझधार में आ कर
न देख छूटता
किनारा,
कुछ पाने के लिए ज़िन्दगी में, बहुत
कुछ, खोना भी है लाज़िम,
* *
- शांतनु सान्याल
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