बहोत मुश्किल है किसी के लिए
खुद को यूँ ही तबाह करना
परेशां नज़रों से न देखो
आसाँ नहीं दिल को अथाह करना
डूब जाएँ किनारों की ज़मीं
इस तरह बहने की चाह रखना
नाज़ुक हैं कांच के रस्ते
धीरे ज़रा प्यार बेपनाह करना
मौसमी फूलों से न हों मुतासिर
इश्क़ मेरी जाँ बारहों माह करना
खला के बाद भी है कोई दुनिया
हर जनम में मिलने की चाह रखना -
- - शांतनु सान्याल
22 नवंबर, 2010
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