15 नवंबर, 2010

नज़्म - - तलाश

कोई शख्स तन्हा, किसी को हर सू तलाश करता रहा
छू भी न सके जिसको, उसे पाने की आस  करता रहा,
सितारे डूबते गए , दूर स्याह  आसमां की गहराइयों में
न जाने क्यों तमाम रात, खुद को उदास करता रहा,
चाँद की परछाई, समंदर से लुकछुप करती रही बारहा
वो जागी नज़रों में , ख्वाबों को यूँ अहसास करता रहा,
कब रात ढली, अलसाई निगाहों में लिए अफसाने
उम्र भर इसी उलझन में अपने आपको हताश करता रहा,
- - शांतनु सान्याल

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  2. कब रात ढली , अलसाई निगाहों में लिए अफसाने
    उम्र भर इसी उलझन में अपने आपको हताश करता रहा,

    बहुत सुंदर रचना। आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ शब्दों में गलती है.. नोट कर लें..
    "'हरसू' तलाश करता रहा..."
    "उसे पाने की 'आस' करता रहा"
    " दूर 'स्याह' आसमां की गहराइयों में.."
    "अपने आपको 'हताश' करता रहा,"

    आभार

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  4. धन्यवाद - सस्नेह / आपके अमूल्य प्रतिक्रियाएं भविष्य में कुछ बेहतर लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं/

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