शाम उतरी है फिर धीरे धीरे
छत मेंअभी तक फैले हैं कुछ
प्रीत के सपने बेतरतीब, रंगीन
कपड़ों की तरह, हवाओं में
लहराते हुए, रात गए तुमने
उन्हें उतारा और बिस्तर में
फिर बिखेर दिया कल के लिए
काश सुबह से पहले उन्हें तह
कर दिया होता, इक धुली सी
भीनी भीनी खुशबू रह गई
होती, सलवटों में कहीं खो
सी गईं वो नफ़ासत, अब तो
जिंदगी के रस्सियों में पुनः
फैलाना होगा, भीगे भावनाओं
को नर्म धूप में सुखाना होगा /
-- शांतनु सान्याल
बहुत खूबसूरत बिम्ब प्रयोग किये हैं ....सुन्दर नज़्म
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी - धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया नव कृति के लिए प्रेरित करतीं हैं , नमन सह /
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