वो सभी थे कभी महा अनल पथ यात्रि
हाथों में हाथ लिए, वृन्द चीत्कार के मध्य
गहन अन्धकार हो या पुलकित निशीथ
हास्य व् क्रंदन, कभी उच्च प्रतिकार के मध्य
वो थे आग्नेय अरण्य के अनाम वासी
धर्म-अधर्म के बाहर, मानव विचार के मध्य
वो तुमुल प्रणय के साक्षी, सृष्टि के निर्माता
महोत्सव जय गान मेंथे, कभी हाहाकार के मध्य
एक विशाल विह्ग वृन्द, उड़ गये जाने कहाँ
जर्जरित नभ में थे वो, कभी सिंह द्वार के मध्य
कोई उदासीन नेहों से तकता शून्य नीलाकाश
वो यात्रि न जाने कब लौटेंगे इस संसार के मध्य/
-- शांतनु सान्याल
हाथों में हाथ लिए, वृन्द चीत्कार के मध्य
गहन अन्धकार हो या पुलकित निशीथ
हास्य व् क्रंदन, कभी उच्च प्रतिकार के मध्य
वो थे आग्नेय अरण्य के अनाम वासी
धर्म-अधर्म के बाहर, मानव विचार के मध्य
वो तुमुल प्रणय के साक्षी, सृष्टि के निर्माता
महोत्सव जय गान मेंथे, कभी हाहाकार के मध्य
एक विशाल विह्ग वृन्द, उड़ गये जाने कहाँ
जर्जरित नभ में थे वो, कभी सिंह द्वार के मध्य
कोई उदासीन नेहों से तकता शून्य नीलाकाश
वो यात्रि न जाने कब लौटेंगे इस संसार के मध्य/
-- शांतनु सान्याल
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