15 नवंबर, 2010

नज़्म


लब - ऐ -साहिल पे उसने, कोई राज़ यूँ ही छिपा लिया अक्सर
ख़ामोश निगाहों से सही, कोई बात यूँ ही बता दिया अक्सर,
जो जान के अनजान नज़र आये, नफासत से दामन बचा गए
मुस्कराएअजनबी की तरह, खुद को यूँ ही बचा लिया अक्सर,
हर तरफ थे पहरे, हर जानिब भटकती आँखों के हजूम,
वो आये पैगाम-ऐ-वफ़ा बनकर,इश्क़ यूँ ही जाता दिया अक्सर,
न कोई शक़ न सुबू की थी गुंजाइश, पाकीज़गी तो देखो
अक्श मेरी, अपनी आँखों में चुपचाप यूँ ही बसा लिया अक्सर /
--- शांतनु सान्याल

2 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद - सस्नेह / आपके अमूल्य प्रतिक्रियाएं भविष्य में कुछ बेहतर लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं/

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