वो एक बूंद जो पलकों से टूट कर
पत्थरों में गिरा, ज़माना गुज़र गया
तुम्हें याद हो, कि न हो वो लम्हात
मगर पत्थरों के बीच वो ज़ब्त हो गया
सदियों से लेखक, कवि या शायरों ने
तलाशा उसे, उत्खनन किया रात दिन
वो घनीभूत अश्रु न जाने किस किस रूप
में लोगों ने देखा, और महसूस किया
कल्पनाओं के रंग भरे चित्रकारों ने
जौहरियों ने खुबसूरत नाम दिए
माणिक, मुक्ता न जाने क्या क्या
कैसे समझाऊं वो बूंद तो पलकों से
गिरा ज़रूर, ये हकीक़त है लेकिन
वो अब तलक मेरी दिल की पनाहों
में है मौजूद, काश कोई देख पाता उसे /
-- शांतनु सान्याल
गिरा ज़रूर, ये हकीक़त है लेकिन
जवाब देंहटाएंवो अब तलक मेरी दिल की पनाहों
में है मौजूद, काश कोई देख पाता उसे
दिल को छु गईं ये पंक्तियाँ...
शुक्रिया पूजा जी - धन्यवाद् /
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