चाँदनी रात है, दूर तलक बिछे हैं, हसरतों के मोती,
खुशबू-ऐ-जिस्म है या शाख-ऐ-गुल, जी चाहे निखर जाएँ ।
किसी की धडकनों में छलकती हैं मधु बूंदों की खनक,
इक नशा है, छाया शब्-ऐ-तन्हाई में चाहे जिधर जाएँ,
नज़्म ओ ग़ज़ल, गीत ओ संगीत, राहों में हैं बिखरे पड़े
किसी के क़दमों तले मौजें हैं रवाँ, दिल चाहे संवर जाएँ,
रात के पखेरू तकते हैं, उनींदी आँखों से बार बार हमको,
सागर के सीने में कौंधती हैं, बिजलियाँ ज़रा ठहर जाएँ,
कश्तियाँ भूल गये रस्ते, चाँद भटके है मजनू की तरह,
आसमां ओ ज़मीं के दरमियाँ, शिफर को इश्क़ से भर जाएँ,
इस रात की गहराइयों में चलों खो जाएँ सुबह से पहले,
छु लो यूँ ही बेखुदी में, कहीं शाखों से न सभी फूल झर जाएँ ।
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किसी के क़दमों तले मौजें हैं रवाँ, दिल चाहे संवर जाएँ,
रात के पखेरू तकते हैं, उनींदी आँखों से बार बार हमको,
सागर के सीने में कौंधती हैं, बिजलियाँ ज़रा ठहर जाएँ,
कश्तियाँ भूल गये रस्ते, चाँद भटके है मजनू की तरह,
आसमां ओ ज़मीं के दरमियाँ, शिफर को इश्क़ से भर जाएँ,
इस रात की गहराइयों में चलों खो जाएँ सुबह से पहले,
छु लो यूँ ही बेखुदी में, कहीं शाखों से न सभी फूल झर जाएँ ।
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शांतनु सान्याल
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद - सस्नेह / आपके अमूल्य प्रतिक्रियाएं भविष्य में कुछ बेहतर लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं/
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